शिमला
श्राद्ध का हिंदू धर्म में महत्व
श्राद्ध का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। प्राचीन सनातन धर्म के अनुसार हमारे पूर्वज देवतुल्य हैं और इस धरा पर हमने जीवन प्राप्त किया है और जिस प्रकार उन्होंने हमारा लालन-पालन कर हमें कृतार्थ किया है, उससे हम उनके ऋणी हैं। समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष प्रेरित है, जो जातक को पितर ऋण से मुक्ति मार्ग दिखाता है।
‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।
श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जो श्राद्ध का प्रथम अनिवार्य तत्व है अर्थात पितरों के प्रति श्रद्धा तो होनी ही चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महालय पक्ष कहलाता है। इस वर्ष 29 सितंबर से 14 अक्तूबर तक श्राद्ध हैं। इस अवधि के 16 दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से निर्धारित किए गए हैं। यही अवधि पितृ पक्ष के नाम से जानी जाती है।
पितृ पक्ष 2023 श्राद्ध की सभी तिथियां
पूर्णिमा-प्रतिपदा का श्राद्ध – 29 सितंबर 2023
द्वितीया तिथि का श्राद्ध – 30 सितंबर 2023
तृतीया तिथि का श्राद्ध – 1 अक्तूबर 2023
चतुर्थी तिथि श्राद्ध- 2 अक्तूबर 2023
पंचमी तिथि श्राद्ध – 3 अक्तूबर 2023
षष्ठी तिथि का श्राद्ध – 4 अक्तूबर 2023
सप्तमी तिथि का श्राद्ध – 5 अक्तूबर 2023
अष्टमी तिथि का श्राद्ध – 6 अक्तूबर 2023
नवमी तिथि का श्राद्ध – 7 अक्तूबर 2023
दशमी तिथि का श्राद्ध – 8 अक्तूबर 2023
एकादशी तिथि का श्राद्ध – 9 अक्तूबर 2023
मघा तिथि का श्राद्ध – 10 अक्तूबर 2023
द्वादशी तिथि का श्राद्ध – 11 अक्तूबर 2023
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध – 12 अक्तूबर 2023
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध – 13 अक्तूबर 2023
क्यों की जाती है पितृ पूजा?
पितृ पक्ष में किए गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है तथा कर्ता को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण गीता में उपदेशित करते हैं। आत्मा जब तक अपने परम-आत्मा से संयोग नहीं कर लेती, तब तक विभिन्न योनियों में भटकती रहती है और इस दौरान उसे श्राद्ध कर्म में संतुष्टि मिलती है। पंडित विपन शर्मा ने कहा कि शास्त्रों में देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी कहा गया है। यही कारण है कि देवपूजन से पूर्व पितर पूजन किए जाने का विधान है। अर्थात ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।’
महाभारत काल से जुड़ी है मान्यता
गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था। भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है। चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था। उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे. कुछ मान्यताएं बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका श्राद्ध किया था।
अगर पितरों के श्राद्ध की तिथि मालूम नहीं है तो क्या करें?
अगर कारणवश पितरों के निधन की तिथि पता नहीं है, तो ऐसे में आप सर्व पितृ अमावस्या के दिन उनके नाम से श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन सभी के नाम से श्राद्ध किया जाता है